मै नारी हूं,
नारायणी हूं,
मैं औरत हूँ,
मैं न चाहूँ
मंदिरों में,ग्रंथों में,
मैं पूजी जाऊँ.।
मैं तो बस,
इतना चाहूँ,
नजरों में,
सबके मैं,
बस अपने लिए,
इज्जत चाहूं.।
न माधुर्य, न ममता,
की मूरत कहलाऊँ,
मैं धरती समान ,
ममतामई हूँ,
तो उसकी तरह,
न मैं रौंधी जाऊँ,
सुंदरता की देवी हूँ,
तो लोगों की नजरों,
में न तौली जाऊं,
मैं कोई वस्तु न बन,
कर रह जाऊँ,
सिर पर ताज न,
बनाना चाहूं,
मगर ठोकर में भी,
मैं न रहना चाहूँ.।
मैं नारी हूँ ,
नारायणी हूं,
मैं औरत हूं,
मैं अबला नहीं,
कमज़ोर नहीं,
न समझना सब्र,
संयम की इंतहा,
वक्त पड़ने पर,
इम्तिहान से भी,
मैं न डरना जानूँ.।
मैं नारी हूं,
नारायणी हूं,
मैं औरत हूं,
मैं न चाहूं,
मंदिरों में,
ग्रंथो में पूजी जाऊं..।
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