मैं नारी हूं,,, कविता

 





मै नारी हूं,

नारायणी हूं,

मैं औरत हूँ,

मैं न चाहूँ

मंदिरों में,ग्रंथों में,

मैं पूजी जाऊँ.।

 

मैं तो बस,

इतना चाहूँ,

नजरों में,

सबके मैं, 

बस अपने लिए,

इज्जत चाहूं.।


 

न माधुर्य, न ममता,

की मूरत कहलाऊँ,

मैं धरती समान ,

ममतामई  हूँ,

तो उसकी तरह,

न मैं रौंधी जाऊँ,

 

सुंदरता की देवी हूँ,

तो लोगों की नजरों,

में न तौली जाऊं,

मैं कोई वस्तु न बन,

कर रह जाऊँ,

सिर पर ताज न,

बनाना चाहूं,

मगर ठोकर में भी, 

मैं न रहना चाहूँ.।

 

मैं नारी हूँ ,

नारायणी हूं,

मैं औरत हूं,

मैं अबला नहीं,

कमज़ोर नहीं,

न समझना सब्र,

संयम की इंतहा,

वक्त पड़ने पर,

इम्तिहान से भी,


मैं न डरना जानूँ.।

मैं नारी हूं,

नारायणी हूं,

मैं औरत हूं,

मैं न चाहूं,

मंदिरों में,

ग्रंथो में पूजी जाऊं..।



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