समझौते का प्यार (भाग 7) Love Story | Contract Marriage | कहानी

 हम दोनों एक दूसरे को खीर खिला के हाथ दो लिए ।

मैंने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिए ।
साक्षी के धड़कन तेज मानो वो डर गई या प्यार में ऐसा होता है। मुझे नहीं पता
मैं उसके हाथ से अपना हाथ हटा लिए ।
साक्षी ने अपने हाथ बढ़ा कर मेरे हाथों पर रख दी अब भी उसकी धड़कन तेज ही है ।
मैं : क्या हुआ ।
साक्षी : कुछ नहीं।
मैं : तो इतना परेशान क्यों हो ।
साक्षी : हमें भी मालूम नहीं।
         आप मुझे भूलोगे तो नहीं।
मैं : तुम्हें कैसे भूल सकते है।
साक्षी : मेरे सर पर अपने हाथ रखकर बोलो ।
मैं : तुम्हारी सिर पर नहीं मैं अपने सिर पर हाथ रख कर बोल रहा हूं।
साक्षी : नहीं मेरे सर एक बार बोली ना मैं
मैं : लो अब हुआ ।
साक्षी : हां। आप शादी करोगे मुझसे ।
मैं : भला तुमसे शादी कौन नहीं करना चाहेगा ।
    हां ज़रूर करूंगा ।
साक्षी : कब करोगे ।
मैं : समय आने दो अभी तो इंटर तो पास किए ही नहीं ।
साक्षी : मुझे शादी करनी है।
मैं : हर एक चीज का समय होता है । अगर समय से पहले किए तो हम दोनों को पढ़ाई रुक ही जाएंगे।
फिर हमें कमाने के आलावा कोई और रास्ता ही नहीं रहेंगे ।
मैं जाऊंगा कमाने के लिए आप घर पर मेरे राह जोहती
रहोगी ।
लेकिन अभी तो हम दोनों आराम से मिल रहें है ना जब सब रास्ता बंद हो जाएंगे तो हम दोनों शादी कर लेंगे ।

साक्षी : सही बोल रहे है आप
          ( वो हमसे लिपट गई और रोने लगी )
मैं : क्या हुआ क्यों रो रही हो।
साक्षी : वैसे ही ।
मैं : लगता है तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं।
साक्षी : हां है ।
मैं : तो फिर रोई क्यों ।
साक्षी : पता नहीं रोना आ गया ।
         ( मैं उसकी आंसू हटा दिए और उसकी आंखें को गौर से देखने लगा। )
क्या देख रहे हो ।
मैं : कुछ नहीं
     ( उसकी ओठ की पंखुरी गुलाब के पते की तरह मुलायम सी और खुशबूदार लग रही थी ।
वो थोड़ी थोड़ी अपने ओठ मरे पास ला रही थी मैं भी थोड़ा आगे बढ़ाया वो लंबी सांस ले रही थी ।
हम दोनों एक दूसरे को चुम्बन किए , और मैं खरे हो गया )
      जा रहा हूं ।
साक्षी : रुक जाओ
           ( और मेरे हाथ पकड़ ली वो सर झुका ली )
मैं : कल आते
          ( रुकने का मन मुझे भी कर रहा है । लेकिन आज रुका तो प्यार में सब्र का बांध टूट जाए तो बरी मुस्कील होगी । मुझे नहीं लगता की अब हम दोनों शादी के बिना रह सकते । क्योंकि आग दोनों तरफ लगी है ।
साक्षी की हाथ छुड़ाकर हम चल दिए ।
वो एक टक सी मुझे देखी जा रही थी उसकी आंखों से लगता था हम दोनों फिर बरसों बाद मिलेंग ।
उसकी भोली सी सूरत मुझे उसकी ओर आकर्षित कर रही थी।
मैं भी वहां से हिल नहीं रहा था ।
पैर मानो जम सी गई ।
साक्षी को मैने इसारा किया आने को वो चली आई मैं गले लग है ।
वो कस कर पर ली थी हमें छोड़ने की नाम ही नहीं ली रही थी । मैं पूरा प्रयास कर रहा था छुड़ाने को लेकिन वो भी ज़िद सी धर ली ।
अंततः मैने छुरा ही लिया और चल दिए वहां से ।


Lekhak :- Shailendra Bihari 

वो जिद्द ही क्या थी प्यार की
मन जब हमपे मचल गई
तू आई थी क्या करने
क्या करके चल गई

आगे की बात आगे 👉👉👉


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