ऐ दुनियां वालो अपने आप को संभालो ।
बढ़ती आबादी में अपने आप को ढालो ।।
रोज बढ़ रही है एक नई तमाशा ।
शिक्षा को छोर कर सब सीख रहे भाषा ।।
अपने ही अपने पर कर रहे अत्याचार ।
आदमी ही आदमी को कर रहे व्यापार ।।
जिंदगी सबके लिए हो गई है तमाशा ।
सब अपने आप को बना रहे परिभाषा ।।
लेखक :- Shailendra Bihari
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