घूंघट में छुपी थी नूर ।
मैं भी देखने के लिए था मजबूर ।।
थोरी सी मुस्कुराहट थी
मिलन की धीमी सी आहट थी
पहली मिलन की वो रात थी ।
छत पर थोड़ी थोड़ी बरसात थी ।।
हिरनी जैसी उसकी आंखें थी ।
मैसम भी बरसातें थी ।।
मिलन की क्यों जल्दी थी ।
उसकी भी मन मचल गई थी ।।
घूंघट उठाई अबकी बारी।
वो शर्मा गई नारी ।।
नारी वो प्यारी थी ।
पिया मिलन की तैयारी थी ।।
लेखक :- शैलेंद्र बिहारी
Shailendra Bihari Kavita
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