एक माँ की ममता

बिन माँ के बच्चे ने,

  किसी शख्स से पूछा,

बताओ मुझको  जरा

कैसी होती  माँ की ममता?


 "शब्दों में ना समा पाए 

किसी भी माँ की ममता

उसके स्नेह के आँचल में

आसमान भी कम पड़ता।


कभी सिरहाने बैठ 

लोरी गाती ममता,

बच्चे के निवाले के लिए

हाथ  जलाती ममता!


कभी खुद भूखी रह,

खाना खिलाती  ममता,

अपने विशाल हृदय का,

परिचय कराती ममता! 

 

कभी जिन्दगी की धूप में

छाँव बन जाती ममता,

कभी बिन माँगे थाली 

आगे लाती  ममता!


कभी बिन बोले,

हर भाव पढ़ जाती ममता,

कभी जख्मों के लिए,

मरहम बन जाती  ममता!


कभी जाग सारी रात,

सपने दिखाती  ममता,

कभी बिन छुए बिन देखे

पहचान जाती   ममता!



कभी गुरू बन, 

ज्ञान जगाती ममता,

अपनी तकलीफ छिपाती

दूजे  में रो जाती ममता!


कभी खाने के डब्बे में, 

भरी होती  ममता,

कभी बेचैनी में 

चैन होती ममता!


हर बच्चे के लिए,

 देवी का आशीर्वाद है ममता,

तभी ईश्वर  भी बच्चों के लिए,

अपनी जगह इन्हें चुनता!


सारे जहाँ की दौलत पर,

 भारी पड़ती ममता,

बड़ी अनमोल धरोहर,

होती माँ की ममता!


 निःस्वार्थ बड़ी होती माँ की  ममता,

उसका कर्ज चुकाने को ,

पूरा जीवन भी कम है पड़ता!


इस ममता के आगे ,

त्रिदेव को नतमस्तक होना पड़ता,

 ममता की गोद-सा सुखद,

ना कोई बिस्तर होता!



इस रिश्ते-सा सच्चा,

 ना कोई रिश्ता  होता,

बड़े बदनसीब होते हैं,

जिनको ये सुख नहीं मिलता !


पर उन अभागों का क्या कहना,

जिनके द्वारा इसका अपमान है होता,

अफसोस के अलावा ,

उनके जीवन में कुछ नहीं रहता"!


वो शख्स फिर भर्राए स्वर में यही कहता-

"मेरे लिए ऐसी होती माँ की ममता,

भरे नयन लेकर वो 

बारबार यही कहता-

मेरे लिए तो सबकुछ होती माँ की ममता"!


श्वेता रचित,नई दिल्ली


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