आदत में हो शामिल,
जरूरत ही बन गए हो,
जीवन के अँधेरों में,
उजाले से बन गए हो।
रौशन तुम्हीं से दुनिया,
तुमसे जिन्दगानी,
मेरे हृदय गगन के,
चाँद तारे बन गए हो!
मुरझाए से जीवन में,
बसंत झोंके बन गए हो,
मन के सूनेपन में,
कलरव ही बन गए हो।
पहले जो थी आदत ,
अब लत-सी हो गए हो,
कभी गलत तुम,
कभी सही से हो गए हो!
अरमानों में मेरे,
मेहमां से बन गए हो,
पलकों पर सजाऊँ
वो ख्वाब बन गए हो!
ठिठुरन भरी रातों में,
अगन भी बन गए हो,
तपन भरी दोपहरी में
चंदन भी बन गए हो!
रास आए ना कुछ भी,
तुम जो मिल गए हो,
जीने की जरूरत,
सामान बन गए हो!
खुमारी है ये ऐसी,
पागल ही कर गए हो,
तुमको क्या बताएँ,
तुम क्या ही बन गए हो!
लगता नहीं जुदा थी,
अपनी कभी कहानी,
इस जिस्म की तुम तो,
अब जान बन गए हो!
मेरे गीत की तुम,
आवाज बन गए हो,
छेडूँ जब भी सरगम,
तुम साज बन गए हो!
अब तो जीने की ,
वजह ही बन गए हो,
जरूरतों में अब तो,
बड़े खास बन गए हो!
आदत भी बन गए हो,
जरूरत भी बन गए हो,
जीवन के अँधेरों में,
उजाले से बन गए हो।
श्वेता कुमारी🙏
0 टिप्पणियाँ