मजदूर मेहनत करते हैं
पर होते मशहूर नहीं,
आलीशान महल बना देते हैं
पर रहते हैं वो दूर कहीं।
दिन-दोपहरी कुछ ना देखें,
तकते तीखी धूप नहीं,
चाहे कोई-सा हो मौसम,
भेद रखते कभी नहीं!
सड़क बनाते उद्योग चलाते,
पहचाने जाते कभी नहीं,
सब उनकी कीर्ति निहारते
उनकी सुध लेते कोई नहीं
समाज के लिए होते जरूरी,
भाव खाते तनिक नहीं,
सीधे-सज्जन सरल वो होते,
चाहे मेहनताना कुछ और नहीं!
दो-जून की रोटी खातिर,
बस जाते जो दूर कहीं,
जीवन की रीत समझा जाते है ,
कहते संग जाएगा कोई नहीं!
जो सिर्फ आज में वो जीते,
कल की फिकर करते ही नहीं,
आज की आज में रहने की,
सीख दे जाते हमें वही!
हम सब मजदूर हैं दुनिया में,
समझे क्यों ये बात नहीं
एक ही मालिक है इस जग में,
हमारी खास औकात नहीं।
हीन दृष्टि ना उन पर डालें,
समझे उनको कमजोर नहीं,
दुनिया की इस भीड़ में,
उन बिन व्यापार- व्यवहार नहीं।
श्वेता रचित
नई दिल्ली
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